क्योंकि… Rahul Dravid खुद एक ‘युग’ है!

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नई दिल्ली- ‘भारतीय टीम विश्व कप 2023 का फाइनल मुकाबला हार गई’ ये लाइन लिखने की ना मेरा मन गवाही दे रहा था और ना ही मेरे हाथ चलने को तैयार थे, लेकिन सच तो सच है और सच यह है कि भारतीय टीम विश्व कप की ट्रॉफी से एक कदम दूर रह गई। सच बताऊं तो मैं भारतीय टीम के प्रदर्शन से बिल्कुल भी निराश नहीं हूं, क्योंकि रोहित शर्मा के नेतृत्व में भारतीय टीम ने जिस तरह से प्रदर्शन किया वो वाकई तारीफ के काबिल है।

‘तुम्हारी जीत से ज्यादा हमारी हार के चर्चे है’

‘तुम्हारी जीत से ज्यादा हमारी हार के चर्चे है’ ये लाइन भारतीय टीम पर बिल्कुल सटीक बैठती है। फाइनल मैच को छोड़ दे तो भारतीय टीम ने रोहित शर्मा के नेतृत्व में गजब का खेल दिखाया है। और इसका पूरा श्रेय मेरे हिसाब से ऐसे शख्स को दिया जाना चाहिए, जो ना तो अखबारों की हेडलाइन में था और ना ही टीवी एंकरों के मुँह पर उसका नाम ज्यादा सुना होगा। हम बात पूर्व दिग्गज खिलाड़ी राहुल द्रविड़ की कर रहे हैं। राहुल द्रविड़ ने साल 2021 में भारतीय टीम के हेड कोच की जिम्मेदारी सँभाली थी। और वह लगातार विश्व कप 2023 के लिए काम कर रहे थे। इसी का नतीजा है कि भारतीय टीम ने शान से विश्व कप के फाइनल में जगह बनाई थी।

राहुल की काबिलियत… कोई बयाँ नहीं कर सकता

राहुल द्रविड़ ने साल 2021 में भारतीय टीम के हेड कोच की जिम्मेदारी सँभाली थी और विश्व कप तक उनका कॉन्ट्रैक्ट था, जो कल रात खत्म हो गया। अब राहुल द्रविड बतौर मुख्य कोच टीम के साथ आगे जुड़ेंगे या ये करार यहीं खत्म हो जाएगा, इस पर कहना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन अगर करार बढ़ाया भी जाता है तो अगले विश्व कप तो राहुल द्रविड़ का बतौर कोच टीम के साथ जुड़े रहना नामुमकिन सा है।

राहुल का जुझारूपन…

यह राहुल द्रविड़ का दुर्भाग्य ही है कि उनके कप्तान रहते या फिर कोच रहते हुए टीम विश्व कप का खिताब नहीं जीत पाई। लेकिन यह दुर्भाग्य उनकी काबिलियत पर भारी नहीं पड़ सकता। भले ही मीडिया ने अपनी कवरेज में राहुल द्रविड़ को उतनी जगह ना दी हो जितनी सचिन तेंदुलकर को मिला करती थी या मिलती है, लेकिन फिर भी राहुल द्रविड़ की पारियाँ, उनके आंकड़े और क्रीज पर उनका जुझारु पन उनकी काबिलियत को बयां करता है।

सपना तो सपना ही रह गया

साल 2011 में विश्व कप की ट्रॉफी जीतने के बाद जिस तरह से युवा खिलाड़ियों ने सचिन को कंधे पर बैठाया था, उस तरह से ट्रॉफी जीतने के बाद राहुल द्रविड़ को युवा खिलाड़ियों के कंधों पर बैठा देखना एक मेरा भी सपना था। मेरा सपना था कि यह विश्व कप भारतीय टीम जीते और अपने सज्जन कोच को डेडिकेट करें। लेकिन सपना तो सपना ही रह गया। राहुल द्रविड़ जिस लेवल के खिलाड़ी थे उनके साथ मीडिया ने हमेशा भेदभाव ही किया है। लेकिन यह भी सच है कि कोई भी चैनल या अखबार राहुल द्रविड़ के कद को कभी बयां ही नहीं कर सकता था या कर सकता है।

द्रविड़ खुद एक युग है

काफी लोगों के मुँह से यह सुनाई देता है कि राहुल द्रविड की बदकिस्मती रही है कि वह सचिन युग में टीम के लिए खेलने आए, पर मेरा मानना है कि राहुल द्रविड़ खुद एक युग है। ऐसा कहा जाता है कि राहुल द्रविड़ भारतीय टीम के हेड कोच बनने को तैयार नहीं थे, लेकिन सौरव गांगुली के कहने पर उन्होंने हामी भरी थी। हेड कोच बनने से पहले राहुल द्रविड़ राष्ट्रीय क्रिकेट एकादमी के प्रमुख के पद पर तैनात थे, जहां उन्होंने युवा खिलाड़ियों को निखारने का काम किया था

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