Cloud Seeding: दिल्ली में प्रदूषण से राहत के लिए आज हो सकती है कृत्रिम बारिश, क्लाउड सीडिंग की तैयारी पूरी

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Cloud Seeding in Delhi
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नई दिल्ली: दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण स्तर के बीच राजधानी को राहत देने के लिए सरकार ने कृत्रिम बारिश कराने का निर्णय लिया है। इस दिशा में आज पहला परीक्षण संभव माना जा रहा है। मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि जैसे ही कानपुर में मौसम साफ होगा, वहां से एयरक्राफ्ट उड़ान भरेगा। अगर उड़ान सफल रहती है, तो आज ही दिल्ली में क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया शुरू की जाएगी, जिसके जरिए राजधानी में कृत्रिम बारिश कराई जाएगी।

कृत्रिम वर्षा या आर्टिफिशियल रेन एक विशेष वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से बादलों की भौतिक अवस्था में कृत्रिम रूप से बदलाव कर वातावरण को बारिश के अनुकूल बनाया जाता है। इस प्रक्रिया को क्लाउड सीडिंग कहा जाता है।

कैसे होती है क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया?

पहले चरण में रसायनों का प्रयोग कर वांछित क्षेत्र के ऊपर वायु के द्रव्यमान को ऊपर की ओर भेजा जाता है ताकि बादलों का निर्माण हो सके। इसके लिए कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम कार्बाइड, कैल्शियम ऑक्साइड, नमक, यूरिया और अमोनियम नाइट्रेट जैसे यौगिकों का उपयोग किया जाता है। ये यौगिक हवा में मौजूद जलवाष्प को सोख लेते हैं और संघनन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

दूसरे चरण में बने हुए बादलों के द्रव्यमान को नमक, यूरिया, सूखी बर्फ और कैल्शियम क्लोराइड की सहायता से बढ़ाया जाता है। इसके बाद तीसरे चरण में सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का छिड़काव किया जाता है। इससे बादलों का घनत्व बढ़ जाता है और वे इतने भारी हो जाते हैं कि वे वर्षा के रूप में नीचे गिरने लगते हैं। इन रसायनों को बादलों में पहुंचाने के लिए हवाई जहाज, रॉकेट या गुब्बारों का इस्तेमाल किया जाता है।

क्यों कराई जाती है कृत्रिम वर्षा?

कृत्रिम वर्षा का मुख्य उद्देश्य प्रदूषण को कम करना और सूखे इलाकों में फसलों को आवश्यक जल उपलब्ध कराना होता है। कई बार मानसून कमजोर रहने या बारिश न होने की स्थिति में यह तकनीक राहत का साधन बनती है। इसके माध्यम से वातावरण में मौजूद धूल और प्रदूषक तत्व वर्षा के साथ जमीन पर बैठ जाते हैं, जिससे वायु गुणवत्ता में अस्थायी सुधार होता है।

सामान्य वर्षा बनाम कृत्रिम वर्षा

सामान्य परिस्थितियों में वर्षा तब होती है जब सूर्य की गर्मी से हवा ऊपर उठती है और ठंडी होकर संघनित हो जाती है। जब बादलों में नमी का घनत्व बढ़ जाता है तो जलकण भारी होकर नीचे गिरते हैं और बारिश होती है। वहीं, कृत्रिम वर्षा में यही प्रक्रिया वैज्ञानिक तरीके से तेज की जाती है ताकि नियंत्रित समय पर वर्षा कराई जा सके। अगर आज का परीक्षण सफल रहा, तो यह दिल्ली के लिए प्रदूषण से राहत की बड़ी उम्मीद साबित हो सकता है।

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